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शम्भाजी की मृत्यु के बाद शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम ने गद्दी सम्हाली। उनके समय मराठों का उत्तराधिकार विवाद गहरा गया पर औरंगजेब भी बूढ़ा हो चला था इस लिए मराठों को सफलता मिलने लगी और वे उत्तर में नर्मदा नदी तक पहुँच गए। बीजापुर का पतन हो गया था और मराठों ने बीजापुर के मुगल क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद तो मुगल साम्राज्य कमजोर होता चला गया और उत्तराधिकार विवाद के बावजूद मराठे शक्तिशाली होते चले गए। उत्तराधिकार विवाद के चलते मराठाओं की शक्ति पेशवाओं (प्रधानमंत्री) के हाथ में आ गई और पेशवाओं के अन्दर मराठा शक्ति में और भी विकार हुआ और वे दिल्ली तक पहुँच गए। १७६१ में नादिर शाह के सेनापति अहमद शाह अब्दाली ने मराठाओं को पानीपत की तीसरी लड़ाई में हरा दिया। इसके बाद मराठा शक्ति का ह्रास होता गया। उत्तर में सिक्खों का उदय होता गया और दक्षिण में मैसूर स्वायत्त होता गया। अंग्रेजों ने भी इस कमजोर राजनैतिक स्थिति को देखकर अपना प्रभुत्व स्थापित करना आरंभ कर दिया। बंगाल और अवध पर उनका नियंत्रण १७७० तक स्थापित हो गया था और अब उनकी निगाह मैसूर पर टिक गई थी। सिख धर्म और सिख साम्राज्य का उदय[संपादित करें]
बाबर की बेटी एवं हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम द्वारा रचित हुमायूँनामा के पहले भाग से बाबर के विषय में एवं दूसरे भाग से हुमायूँ के विषय में जानकारी मिलती है।
बीबीसीसाठी कलेक्टिव्ह न्यूजरूमचं प्रकाशन
कांट के अनुसार भौतिक भूगोल के दो खंड हैं-
पश्चिम से मुस्लिम आक्रमणों में तेजी[संपादित करें]
प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास
हुमायुँ का पुत्र अकबर एक महान शासक साबित हुआ और उसने साम्राज्य विस्तार के अतिरिक्त धार्मिक सहिष्णुता तथा उदार राजनीति का परिचय get more info दिया। वह एक लोकप्रिय शासक भी था। उसके बाद जहाँगीर तथा शाहजहाँ सम्राट बने। शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण करवाया जो आज भी मध्यकालीन दुनिया के सात आश्चर्यों में गिना जाता है। इसके बाद औरंगजेब आया। उसके शासनकाल में कई धार्मिक व सैनिक विद्रोह हुए। हालाँकि वो सभी विद्रोहों पर काबू पाने में विफल रहा पर सन् १७०७ में उसकी मृत्यु का साथ ही साम्राज्य का विघटन आरंभ हो गया था। एक तरफ मराठा तो दूसरी तरफ अंग्रेजों के आक्रमण ने दिल्ली के बादशाह को नाममात्र का ही बादशाह बनाकर छोडा। मराठा साम्राज्य[संपादित करें]
कल्हण कृत राजतरंगिणी से कश्मीर की जानकारी प्राप्त होती है।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत
गुजरात के राजा करन की पुत्री देवलरानी एवं अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र खिज्र खाँ की प्रेमकथा का विवरण।
पूर्व मध्यकालीन भारतीय समाज और संस्कृति के विषय में सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं लेखकों से जानकारी प्राप्त होती है। इन व्यापारियों और लेखकों में अल-बिलादुरी, फरिश्ता, अल्बरूनी, सुलेमान और अलमसूदी महत्त्वपूर्ण हैं जिन्होंने भारत के बारे में लिखा है। फरिश्ता एक प्रसिद्ध इतिहासकार था, जिसने फारसी में इतिहास लिखा है। उसे बीजापुर के सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय का संरक्षण प्राप्त था। महमूद गजनवी के साथ भारत आनेवाले अल्बरूनी (अबूरिहान) ने संस्कृत भाषा सीखकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पूर्णरूप से जानने का प्रयास किया। उसने अपनी पुस्तक ‘तहकीक-ए-हिंद’ अर्थात् किताबुल-हिंद में भारतीय गणित, भौतिकी, रसायनशास्त्र, सृष्टिशास्त्र, ज्योतिष, भूगोल, दर्शन, धार्मिक क्रियाओं, रीति-रिवाजों और सामाजिक विचारधाराओं का प्रशंसनीय वर्णन किया है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय
पू. में ‘हिस्टोरिका’ नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और फारस के संबंधों का वर्णन है।